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पौड़ी गढ़वाल के कुटलमंडा गांव में रहने वाले तीन नेत्रहीन बच्चे अपनी मजबूरी को ताकत बना आज अपनी प्रतिभा के दम पर न सिर्फ़ स्वाभिमान की ज़िंदगी जी रहे हैं बल्कि नाम भी कमा रहे हैं. कोटद्वार से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर बसा कुटलमंडा गांव एक परिवार के कारण आस-पास के इलाक़े में मशहूर हो गया है. इस परिवार की ख़ास बात इसके तीन बच्चे हैं जो जन्मांध हैं. तीनों भाई-बहन देख तो नहीं पाते लेकिन सुन-सुनकर ही इन्होंने सुर साध लिए हैं. मज़दूरी करने वाले उमेश सिंह कहते हैं कि नेत्रहीन बच्चे पैदा होने पर तो पहले उन्हें समझ ही नहीं आया कि उनका जीवन कैसे चलेगा. लेकिन सबसे बड़े निर्मल सिंह ने रेडियो में गाने सुनकर सुर साधे और ताल पकड़ी. शुरू में उसके गाने-बजाने से नाराज़ रहने वाले पिता को बेटे की प्रतिभा का पता तब चला जब लोगों ने उसकी तारीफ़ शुरू की. बड़े बेटे के बाद दूसरा बेटा और बेटी भी जन्मांध ही पैदा हुए लेकिन उन दोनों को भी बड़े भाई की ही प्रतिभा हासिल हुई. ख़ुशबू की तरह उनकी प्रतिभा भी गांव में ही कैद नहीं रही और आज वह उत्तराखंड ही नहीं दिल्ली तक स्टेज शो कर रहे हैं. जल्द ही मायानगरी मुंबई में भी उनका कार्यक्रम होना तय है. निर्मल सिंह कहते हैं कि कमी चाहे कुछ भी निराश नहीं होना चाहिए और अपनी प्रतिभा को साधने की कोशिश करते रहना चाहिए. (अनुपम भारद्वाज की रिपोर्ट)
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